पाठ्य पुस्तकें >> राष्ट्रभाषा भारती कक्षा 8 राष्ट्रभाषा भारती कक्षा 8गंगादत्त शर्मा
|
1 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
कक्षा-8 के बच्चों के लिए हिन्दी भाषा पुस्तक...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सामान्यत: शिक्षा और शिक्षण के क्षेत्र में आ रहे नवीनतम परिवर्तनों के
अनुरूप शिक्षण सामग्री का निर्माण आज शिक्षा जगत् की महत्त्वपूर्ण
आवश्यकता बन गया है। ‘राष्ट्रभाषा-भारती’ नाम से
प्रकाशित
यह पुस्तकमाला एक ओर जहाँ नवीनतम शिक्षण विधियों और सामाजिक
अपेक्षाओं के अनुरूप एक उपयोगी तथा प्रभावी उपकरण के रूप में उभरकर आई है, वहीं इसके निर्माण शिक्षार्थियों की रुचि, क्षमता और मानसिक स्तर का भी
पूर्ण ध्यान रखा गया है।
प्राथमिक कक्षाओं की अपेक्षा माध्यमिक कक्षाओं में भाषा और अधिगम के उद्देश्य अधिक स्पष्ट और व्यापक हो जाते हैं। किशोरावस्था के विद्यार्थियों के अनुभव जगत और तार्किकता में पर्याप्त विस्तार हो चुका होता है। वे अपने परिवेश और समाज को अधिक विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखने लगते हैं। संवेदना, सहयोग, क्रियाशीलता, वैज्ञानिक, दृष्टिकोण, देशभक्ति, सच्चरित्रता जैसे गुणों की जानकारी देने और उन्हें इन गुणों की ओर प्रेरित करने का भी यही समय होता है। इसलिए माध्यमिक कक्षाओं के लिए राष्ट्रभाषा-भारती की पाठ्य सामग्री का निर्माण करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि सामग्री मात्र सूचनात्मक न हो, समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप भावी पीढी को सक्षम बनाने में भी समर्थ हो। दूसरी ओर विद्यार्थियों को प्रमुख साहित्यिक विधाओं से भी परिचित कराने का प्रयास किया गया है। क्योंकि माध्यमिक कक्षाओं तक आते-आते उन्हें इस योग्य बन जाना चाहिए कि वे सृजनात्मक साहित्य की सराहना कर सकें। इसलिए विविध प्रकार के निबंध, यात्रा-वृत्तांत, संस्मरण, पत्र, कथा, एकांकी और कविताओं को सँजोया गया है।
आठवीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते विद्यार्थियों की भाषिक कुशलताओं का पर्याप्त विकास हो चुका होता है। इसलिए भाषा के अतिरिक्त साहित्यिक विधाओं के मर्म ग्रहण करने में उसे पर्याप्त दक्षता प्राप्त कर लेनी चाहिए। इसलिए माध्यमिक कक्षाओं में, विशेषकर आठवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में, पाठ्य सामग्री के चयन में एक ओर शिक्षाविदों और मनोवैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए केन्द्रित तत्त्वों का ध्यान रखना आवश्यक था तो दूसरी ओर हिन्दी की कुछ अच्छी साहित्यिक रचनाओं का आस्वाद भी आवश्यक था। इसलिए आठवीं कक्षा में विषयों की विविधता के अतिरिक्त अच्छी रचनाओं की भी विविधता है। एक ओर जयशंकर प्रसाद, प्रेमचन्द, सुदर्शन, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, विष्णु प्रभाकर जैसे सिद्ध गद्यकारों की रचनाएँ हैं तो दूसरी ओर तुलसी, मीरा, मैथिलीशरण गुप्त, सोहनलाल द्विवेदी जैसे प्रतिष्ठित कवियों की काव्यरूपक और और व्यंग्य भी स्तरीय हैं।
पाठांत अभ्यासों, गद्य-पाठों के साथ भाषा अधिगम के अभ्यास हिन्दी की संरचना को स्पष्ट करने के लिए बहुत उपयोगी होंगे। ये सहप्रयुक्त व्याकरण का स्पष्टीकरण करने में और भाषा की गुत्थियों को सुलझाकर विद्यार्थियों की रुचि बढ़ाने में उपयोगी होंगे। संपूर्ण पुस्तकमाला की रणनीति यह रही है कि शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पूरी कक्षा की भागीदारी हो, मात्र शिक्षक की नहीं। इसलिए पाठांत अभ्यासों में और अभ्यास पुस्तिकाओं में ऐसे प्रश्न रखे गए हैं जो समूह की भागीदारी को सुनिश्चित करें। भाषा के चारों कौशलों-सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना- का समन्वित विकास। सभी भाषिक कौशलों के अभ्यास के लिए शिक्षक की सक्रिय भूमिका अपेक्षित है और सतत् प्रक्रिया भी है। पाठ्य पुस्तक शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के हाथों में एक साझे उपकरण के समान होती है जिसका उपयोग भी साझे रूप में ही हो सकता है।
सभी पुस्तकों का प्रणयन शिक्षा जगत के प्रख्यात विशेषज्ञों तथा अनुभवी और कर्मठ शिक्षकों के समन्वित प्रयास से संभव हो सका है। पुस्तक माला के लेखक और मानद परामर्शदाता भाषा शिक्षण के क्षेत्र में अधुनातन प्रवृत्तियों के जानकार हैं और शिक्षण तथा सामग्री-निर्माण में उनका सुदीर्घ अनुभव रहा है। शिक्षा और शिक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही अनेक संस्थाओं और संगठनों के शिक्षाविदों तथा ऐसी अनेक संस्थाओं के जुड़े प्रबुद्ध शिक्षकों ने भी प्रस्तुत सामग्री पर अपनी समालोचनात्मक सम्मति प्रदान की है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। हम उन लेखकों और रचनाकारों के भी आभारी हैं जिनकी समर्थ रचनाएँ पाठों में आधार सामग्री के रूप में ली गई हैं और नई पीढ़ी को ज्ञान का प्रकाश देने का माध्यम बनी हैं।
प्राथमिक कक्षाओं की अपेक्षा माध्यमिक कक्षाओं में भाषा और अधिगम के उद्देश्य अधिक स्पष्ट और व्यापक हो जाते हैं। किशोरावस्था के विद्यार्थियों के अनुभव जगत और तार्किकता में पर्याप्त विस्तार हो चुका होता है। वे अपने परिवेश और समाज को अधिक विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखने लगते हैं। संवेदना, सहयोग, क्रियाशीलता, वैज्ञानिक, दृष्टिकोण, देशभक्ति, सच्चरित्रता जैसे गुणों की जानकारी देने और उन्हें इन गुणों की ओर प्रेरित करने का भी यही समय होता है। इसलिए माध्यमिक कक्षाओं के लिए राष्ट्रभाषा-भारती की पाठ्य सामग्री का निर्माण करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि सामग्री मात्र सूचनात्मक न हो, समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप भावी पीढी को सक्षम बनाने में भी समर्थ हो। दूसरी ओर विद्यार्थियों को प्रमुख साहित्यिक विधाओं से भी परिचित कराने का प्रयास किया गया है। क्योंकि माध्यमिक कक्षाओं तक आते-आते उन्हें इस योग्य बन जाना चाहिए कि वे सृजनात्मक साहित्य की सराहना कर सकें। इसलिए विविध प्रकार के निबंध, यात्रा-वृत्तांत, संस्मरण, पत्र, कथा, एकांकी और कविताओं को सँजोया गया है।
आठवीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते विद्यार्थियों की भाषिक कुशलताओं का पर्याप्त विकास हो चुका होता है। इसलिए भाषा के अतिरिक्त साहित्यिक विधाओं के मर्म ग्रहण करने में उसे पर्याप्त दक्षता प्राप्त कर लेनी चाहिए। इसलिए माध्यमिक कक्षाओं में, विशेषकर आठवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में, पाठ्य सामग्री के चयन में एक ओर शिक्षाविदों और मनोवैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए केन्द्रित तत्त्वों का ध्यान रखना आवश्यक था तो दूसरी ओर हिन्दी की कुछ अच्छी साहित्यिक रचनाओं का आस्वाद भी आवश्यक था। इसलिए आठवीं कक्षा में विषयों की विविधता के अतिरिक्त अच्छी रचनाओं की भी विविधता है। एक ओर जयशंकर प्रसाद, प्रेमचन्द, सुदर्शन, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, विष्णु प्रभाकर जैसे सिद्ध गद्यकारों की रचनाएँ हैं तो दूसरी ओर तुलसी, मीरा, मैथिलीशरण गुप्त, सोहनलाल द्विवेदी जैसे प्रतिष्ठित कवियों की काव्यरूपक और और व्यंग्य भी स्तरीय हैं।
पाठांत अभ्यासों, गद्य-पाठों के साथ भाषा अधिगम के अभ्यास हिन्दी की संरचना को स्पष्ट करने के लिए बहुत उपयोगी होंगे। ये सहप्रयुक्त व्याकरण का स्पष्टीकरण करने में और भाषा की गुत्थियों को सुलझाकर विद्यार्थियों की रुचि बढ़ाने में उपयोगी होंगे। संपूर्ण पुस्तकमाला की रणनीति यह रही है कि शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पूरी कक्षा की भागीदारी हो, मात्र शिक्षक की नहीं। इसलिए पाठांत अभ्यासों में और अभ्यास पुस्तिकाओं में ऐसे प्रश्न रखे गए हैं जो समूह की भागीदारी को सुनिश्चित करें। भाषा के चारों कौशलों-सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना- का समन्वित विकास। सभी भाषिक कौशलों के अभ्यास के लिए शिक्षक की सक्रिय भूमिका अपेक्षित है और सतत् प्रक्रिया भी है। पाठ्य पुस्तक शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के हाथों में एक साझे उपकरण के समान होती है जिसका उपयोग भी साझे रूप में ही हो सकता है।
सभी पुस्तकों का प्रणयन शिक्षा जगत के प्रख्यात विशेषज्ञों तथा अनुभवी और कर्मठ शिक्षकों के समन्वित प्रयास से संभव हो सका है। पुस्तक माला के लेखक और मानद परामर्शदाता भाषा शिक्षण के क्षेत्र में अधुनातन प्रवृत्तियों के जानकार हैं और शिक्षण तथा सामग्री-निर्माण में उनका सुदीर्घ अनुभव रहा है। शिक्षा और शिक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही अनेक संस्थाओं और संगठनों के शिक्षाविदों तथा ऐसी अनेक संस्थाओं के जुड़े प्रबुद्ध शिक्षकों ने भी प्रस्तुत सामग्री पर अपनी समालोचनात्मक सम्मति प्रदान की है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। हम उन लेखकों और रचनाकारों के भी आभारी हैं जिनकी समर्थ रचनाएँ पाठों में आधार सामग्री के रूप में ली गई हैं और नई पीढ़ी को ज्ञान का प्रकाश देने का माध्यम बनी हैं।
लेखक और संपादक
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book